महाशिवरात्रि: देव से महादेव तक

महाशिवरात्रि, हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह पर्व हर साल फागुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस अद्वितीय पर्व में भगवान शिव की पूजा-अर्चना, ध्यान और तांत्रिक अनुष्ठानों की विशेष विधि से उनका समर्पण किया जाता है। यह पर्व हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और भगवान शिव के भक्तों के लिए यह एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण दिन है।

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Keshav Jha

5/6/20241 min read

महाशिवरात्रि:  देव से महादेव तक
महाशिवरात्रि:  देव से महादेव तक

🙏🙏 सर्वप्रथम तो आप सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं। 🙏🙏

महाशिवरात्रि, हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह पर्व हर साल फागुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस अद्वितीय पर्व में भगवान शिव की पूजा-अर्चना, ध्यान और तांत्रिक अनुष्ठानों की विशेष विधि से उनका समर्पण किया जाता है। यह पर्व हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और भगवान शिव के भक्तों के लिए यह एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण दिन है।

"शिवरात्रि" और "महाशिवरात्रि" एक नहीं हैं। प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को अमावस्या के एक दिन पहले की रात्रि शिवरात्रि कहलाती है। इसका अर्थ ये है कि साल में 12 शिवरात्रि होती है किन्तु इन 12 शिवरात्रियों में फाल्गुन (फरवरी-मार्च) महीने की शिवरात्रि का विशेष महत्त्व है इसी कारण इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है।

महत्व:

महाशिवरात्रि को मनाने के पीछे अनेक कारण हैं। इस दिन को मनाने से विशेष तात्पर्य है जो हमें भगवान शिव के अद्वितीय महत्व के प्रति जागरूक करता है। इसके अलावा, महाशिवरात्रि का पावन पर्व हमें तांत्रिक ज्ञान की महत्वता को समझाता है और हमें सत्य, शुद्धता, तपस्या, ध्यान और वैराग्य की ओर प्रेरित करता है। इस दिन को भगवान शिव के ध्यान, जप, पूजा और ध्यान का विशेष महत्व है।

पौराणिक कथा:

महाशिवरात्रि के महत्व को समझने के लिए पौराणिक कथाओं का अध्ययन करना महत्वपूर्ण है। एक प्रमुख कथा के अनुसार, इस दिन ही समुद्र मंथन के समय निकलने हलाहल विष उत्पन्न हुआ था। इस समस्या का समाधान केवल भगवान शिव ने ही किया और उन्होंने हलाहल विष को पी लिया था। इस कारण से उन्हें नीलकंठ (नीले गले वाले) कहा जाता है।

शिव पार्वती विवाह:

इसी दिन भगवान् शिव का विवाह देवी पार्वती से हुआ था। इसी कारण इसे इस दिन भगवान् शिव के विवाह का उत्सव भी मनाया जाता है और रात्रि को उनकी बारात निकालने का भी चलन है। रात्रि में पूजा का संकल्प कर फलाहार किया जाता है और अगले दिन प्रातः हवन कर व्रत समाप्त किया जाता है।

रात्रि का महत्व:

महाशिवरात्रि के पावन दिन में रात्रि का विशेष महत्व है। इस रात्रि को भगवान शिव की अत्यंत कृपा और आशीर्वाद का संदेश माना जाता है। लोग इस रात्रि में जागरण करके भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं और उनके नाम का जप करते हैं। यह रात्रि भगवान शिव को आनंदित करने का भी अवसर प्रदान करती है और उन्हें ध्यान करने का उत्तम समय होता है।

पुराणों के अनुसार, चन्द्र की 27 पत्नियाँ थी किन्तु उनका रोहिणी पर अधिक अनुराग था। इससे रुष्ट होकर उनकी बाँकी पत्नियों ने अपने पिता प्रजापति दक्ष से चन्द्र की शिकायत कर दी और क्रोध में दक्ष ने चन्द्र को क्षय हो जाने का श्राप दे दिया। परमपिता ब्रह्मा ने चन्द्र को भगवान् शिव की तपस्या करने को कहा। चन्द्र की तपस्या से प्रसन्न हो भगवान् शिव ने चन्द्र को वरदान दिया कि उसकी कान्ति सदा के लिए समाप्त नहीं होगी और वह धीरे-धीरे बढ़कर अपनी पूर्ण कान्ति को प्राप्त करेगा। चन्द्र को भगवान् शिव के दर्शन और ये वरदान महाशिवरात्रि के दिन ही मिला था।

जब अमावस्या के दिन चन्द्र की पूर्ण रूप से अपनी कान्ति खो देता है, उससे एक दिन पहले शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है ताकि भगवान शिव पूर्ण अंधकार में अपनी उपस्थिति एवं ज्ञान से समस्त विश्व को प्रकाशित करते रहें।

🧘‍♂️🧘‍♂️ॐ नमः शिवाय।।🧘‍♂️🧘‍♂️

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्,
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं।